हाई कोर्ट का फैसला बड़ा या उच्च अधिकारियों का आदेश

Gajendra Singh
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बिलासपुर/छत्तीसगढ़

शिक्षक प्रमोशन संशोधन निरस्तीकरण मामले में शिक्षकों की व्यथा थमने का नाम ही नहीं ले रही है। जहां एक ओर न्यायालय ने अपने 03/11/2023 के आदेश में संशोधन निरस्तीकरण के आदेश को ही गलत बताते हुए समाप्त कर दिया और शिक्षकों को पूर्व की शाला में जॉइन कर कर वेतन प्रदान करने का फैसला दिया। किंतु उच्च अधिकारियों द्वारा पूर्व की शाला कि गलत व्याख्या करते हुए, ना तो उन्हें संशोधित शाला में और ना ही पदोन्नत शाला में जॉइनिंग करने का अवसर प्रदान किया गया और ना ही वेतन की समस्या हल हुई। जिससे व्यथित शिक्षकों ने उक्त आदेश के खिलाफ एक नई याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की और उस याचिका की सुनवाई में न्यायालय ने 05/12/2023 को अपने पूर्व के फैसले की व्याख्या करते हुए और प्रतिवादी पक्ष को फटकार लगाते हुए स्पष्ट रूप से यह कहा की न्यायालय के आदेश के बावजूद शिक्षकों को पूर्व की शाला में (जो कि न्यायालय के अनुसार संशोधित शाला है, जहां से शिक्षकों को अंतिम बार वेतन प्राप्त हुआ है) जॉइन ना करने देना एवं वेतन की समस्या हल न करना जानबूझकर की गई गलती है। जो कि न्यायालय के आदेश के अवहेलना की श्रेणी में आता है एवं न्यायालय ने अपने पूर्व के आदेश की व्याख्या करते हुए यह भी कहा की चुंकि 04/09/2023 का संशोधन निरस्तीकरण का आदेश ही समाप्त किया जा चुका है, ऐसे में इस अवधि के दौरान शिक्षकों को मिलने वाली वे सुविधाएं जिनसे वे वंचित हुए हैं, दी जानी चाहिए जो शिक्षकों को सामान्य समय में प्राप्त होती। यानी कि वेतन के संबंध में भी उक्त दिवस को कार्य दिवस मानते हुए वेतन प्रदान करने की बात कही गई है। जैसा कि पूर्व में भी स्पष्ट था की अंग्रेजी के आदेश शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों की समझ से परे होते हैं। एक बार फिर से वही स्थिति निर्मित हुई है और आज 7 दिन बीत जाने के बावजूद शिक्षकों की शाला में वापसी नहीं हो पाई है, ना ही वेतन के संबंध में कोई हल निकला है। संबंधित अधिकारी उच्च कार्यालय से आदेश आने के इंतजार में बैठे हैं और शिक्षक बिना वेतन के घरों में। ऐसे में भला अब सवाल यह उठता है कि, “उच्च न्यायालय का फैसला बड़ा है या अधिकारियों का आदेश?”

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